Monday 21 May 2018

राजा राममोहन राय को समर्पित है आज का गूगल-डूडल, मुग़लों से मिली थी राजा की उपाधि

जीवन परिचय
श्री राजा राम मोहन रॉय
जन्म :
राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 ई. को राधा नगर नामक बंगाल के एक गाँव में, पुराने विचारों से सम्पन्न बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, ग्रीक, हिब्रू आदि भाषाओं का अध्ययन किया था। हिन्दू, ईसाई, इस्लाम और सूफी धर्म का भी उन्होंने गम्भीर अध्ययन किया था। 17 वर्ष की अल्पायु में ही वे मूर्ति पूजा विरोधी हो गये थे। वे अंग्रेज़ी भाषा और सभ्यता से काफ़ी प्रभावित थे। उन्होंने इंग्लैंड की यात्रा की। धर्म और समाज सुधार उनका मुख्य लक्ष्य था। वे ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे और सभी प्रकार के धार्मिक अंधविश्वास और कर्मकांडों के विरोधी थे। अपने विचारों को उन्होंने लेखों और पुस्तकों में प्रकाशित करवाया। किन्तु हिन्दू और ईसाई प्रचारकों से उनका काफ़ी संघर्ष हुआ, परन्तु वे जीवन भर अपने विचारों का समर्थन करते रहे और उनके प्रचार के लिए उन्होंने ब्रह्मसमाज की स्थापना की।
       नई दिल्ली : आज हम किसी भी सामाजिक बुराई के बारे में खुलकर बोलते हैं. इन बुराइयों को लेकर कड़े कानून भी बने हैं, लेकिन सैकड़ों साल पहले ऐसा नहीं था. बाल विवाह हो या सति प्रथा, ये समाजिक प्रथा के अंग थे. लोग, खासकर महिलाएं इन कुरुतियों का शिकार होती थीं, लेकिन इन्हें नियति मानकर इनके खिलाफ बोलना तो दूर सोचना भी पाप माना जाता था. ऐसे में महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज में फैली इन बुराइयों का विरोध किया. गूगल ने आज अपना डूडल राजा राममोहन राय को समर्पित किया है. इस डूडल पर क्लिक करते ही राजा राममोहन राय से जुड़े गूगल के तमाम पेज खुल जाएंगे, जो उनसे जुड़ी विभिन्न तरह की सामग्री से भरे हुए हैं. 
ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर राममोहन राय ने खुद को राष्ट्र सेवा में लगा दिया. वह भारत में दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे, एक तो देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने की लड़ाई और दूसरी, समाज में फैलीं कुरुतियों से देश को मुक्त कराने की लड़ाई. उस समय सती प्रथा, बाल विवाह जैसी बुराइयां पूरे चरम पर थीं. उन्होंने देश में समाज सुधार के लिए संघर्ष किए.


चिंतक और पत्रकार :

राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन', 'संवाद कौमुदी', मिरात-उल-अखबार, बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया. बंगदूत एक अनोखा पत्र था. इसमें बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था. 
साल 1830 में मुगल साम्राज्य का दूत बनकर ब्रिटेन भी गए, ताकि सती प्रथा पर रोक लगाने वाला कानून पलटा जाए. 27 सितम्बर 1833 को राजा राममोहन राय का निधन इंग्लैंड में हुआ. ब्रिटेन के ब्रिस्टल नगर के आरनोस वेल क़ब्रिस्तान में राय की समाधि है.

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