आरिफ खान ने अपना रोजा तोड़कर एक युवा की जान ही नही बचाई बल्कि यह भी साबित कर दिया कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नही होता है।
साथ ही धर्म और मजहब के नाम पर बटवारा करने वालो को करारा जवाब दिया ।
साथ ही धर्म और मजहब के नाम पर बटवारा करने वालो को करारा जवाब दिया ।
घटना :
मैक्स अस्पताल में भर्ती अजय बिजल्वाण (22 वर्ष) की हालत बहुत गंभीर और आई.सी.यू मैं है। लिवर में संक्रमण से ग्रषित अजय की प्लेटलेट्स तेज़ी से गिर रही थी और शनिवार सुबह पांच हज़ार से कम हो गयी थी। चिकित्सक ने पिता खीमानंद बिजल्वाण से कहा कि खून की आवस्यकता है। अगर ए-पोसिटिव ब्लड नही मिला तो जान का खतरा भी हो सकता है। काफी कोशिशों के बाद भी खून देने वाला कोई नही मिला। कोई भी डोनर नही मिलने पर परिजनों ने सोशल मीडिया पर मदद मांगते हुए पोस्ट्स के माध्यम से मदद मांगी।
इंसानियत जिंदा है :
जब सहस्त्रधारा रोड (नालापानी चौक) निवासी नेशनल एसोसिएशन फ़ॉर पेरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष "आरिफ खान" को व्हाट्सएप के माध्यम से सूचना मिली तो उन्हें मैसेज में आये नंबर पर कांटेक्ट करने की कोशिश करी। आरिफ खान ने उन्हें बताया कि वो रोजे से है। अगर चिकित्सक को कोई आपत्ति नही हो तो वह तैयार है। चिकित्सक ने कहा कि भूखे पेट खून नही दिया जा सकता,इसका मतलब रोजा तोड़ना पड़ेगा। आरिफ खान ने बिना कुछ सोचे सीधे खून देने का फैसला ले लिया। इंसानियत के लिए आरिफ खान ने अपना रोज तोड़ दिया। उनका यह भी कहना था कि, "रोजा तोड़ने से किसी की जान बच जाती है तो उन्हें कोई आपत्ति नही होगी, किसी की जान बच गयी ये अच्छा हुआ"।
-जय हिंद
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